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इ॒मा ते॑ वाजिन्नव॒मार्ज॑नानी॒मा श॒फाना॑ सनि॒तुर्नि॒धाना॑। अत्रा॑ ते भ॒द्रा र॑श॒नाऽअ॑पश्यमृ॒तस्य॒ याऽअ॑भि॒रक्ष॑न्ति गो॒पाः ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒मा। ते॒ वा॒जि॒न्। अ॒व॒मार्ज॑ना॒नीत्य॑व॒ऽमार्ज॑नानि। इ॒मा। श॒फाना॑म्। स॒नि॒तुः। नि॒धानेति॑ नि॒ऽधाना॑। अत्र॑। ते॒। भ॒द्राः। र॒श॒नाः। अ॒प॒श्य॒म्। ऋ॒तस्य॑। याः। अ॒भि॒रक्ष॒न्तीत्य॑भि॒ऽरक्ष॑न्ति। गो॒पाः ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को घोड़ों के रखने से क्या सिद्ध करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वाजिन्) घोड़े के तुल्य वेगादि गुणों से युक्त सेनाधीश ! जैसे मैं (ते) आप के (इमा) इन प्रत्यक्ष घोड़ों की (अवमार्जनानि) शुद्धि क्रियाओं और (इमा) इन (शफानाम्) खुरों के (सनितुः) रखने के नियम के (निधाना) स्थानों की (अपश्यम्) देखता हूँ (अत्र) इस सेना में (ते) आप के घोड़े की (याः) जो (भद्राः) सुन्दर शुभकारिणी (गोपाः) उपद्रव से रक्षा करनेहारी (रशनाः) लगाम की रस्सी (ऋतस्य) सत्य की (अभिरक्षन्ति) सब ओर से रक्षा करती हैं, उनको मैं देखूँ वैसे आप भी देखें ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग स्नान से घोड़े आदि को शुद्धि तथा उनके शुम्मों की रक्षा के लिए लोहे के बनाये नालों को संयुक्त और लगाम की रस्सी आदि सामग्री को संयुक्त कर अच्छी शिक्षा दे रक्षा करते हैं, वे युद्धादि कार्यों में सिद्धि करनेवाले होते हैं ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैरश्वरक्षणेन किं साध्यमित्याह ॥

अन्वय:

(इमा) इमानि प्रत्यक्षाणि (ते) तव (वाजिन्) अश्व इव वेगादिगुण सेनाधीश ! (अवमार्जनानि) शुद्धिकरणानि (इमा) इमानि (शफानाम्) खुराणाम् (सनितुः) रक्षणानि यमस्य (निधाना) निधानानि स्थानानि (अत्र) अस्मिन् सैन्ये। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (ते) तव (भद्राः) शुभकरीः (रशनाः) रज्जवः (अपश्यम्) पश्यामि (ऋतस्य) यथार्थम्। अत्र कर्मणि षष्ठी (याः) (अभिरक्षन्ति) सर्वतः पान्ति (गोपाः) पालिकाः ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वाजिन् ! यथाऽहं ते तवेमाश्वस्यावमार्जनानीमा शफानां सनितुर्निधानाऽपश्यमत्र तेऽश्वस्य या भद्रा गोपा रशना ऋतस्याभिरक्षन्ति ता अपश्यं तथा त्वं पश्य ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्नानेनाश्वादीनां शुद्धिं तच्छफानां रक्षणायायसो निर्मितस्य योजनमन्यानि रशनादीनि च संयोज्य सुशिक्ष्य रक्षन्ति, ते युद्धादिषु कार्येषु कृतसिद्धयो भवन्ति ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक घोड्याची स्वच्छता करून त्यांना लोखंडाचे खूर ठोकतात, तसेच लगाम वगैरे साधने एकत्र करतात व घोड्यांना प्रशिक्षण देतात ते युद्ध करू शकतात.